The Earth is not just for humans.Everything on the Earth has stories.
Our literature represents our time on Earth. So when someone says, ‘our time will come’, it means their stories will be heard.
How can we have ‘stories from the margins’ if we gaze from within the margins?
Whose land? Whose rain? Whose voice?
इस बारिश में / नरेश सक्सेना
जिसके पास चली गयी मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गयी
अब जो घिरती हैं काली घटाएं
उसी के लिए घिरती है
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगंध
अब नहीं मेरे लिए
हल नही बैल नही
खेतों की गैल नहीं
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हाहर नहीं मेरे लिए
जिसकी नहीं कोई ज़मीन
उसका नहीं कोई आसमान।
These reflections and images are based on and woven around, an interview with Sushil Shukla, on diversity in children’s books in India. Sushil Shukla is the Director, Ektara Publications (https://www.ektaraindia.in/en/home/)
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