15 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया में सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट (CAA) के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करते छात्रों और शिक्षकों पर दिल्ली पुलिस ने डंडे बरसाए; पुलिस ने इस हिंसा के दौरान डॉ ज़ाकिर हुसैन लाइब्रेरी में भी उपद्रव मचाया । इस घटना से उत्पन्न “रीड फॉर रिवोल्यूशन” एक शक्तिशाली अहिंसक विरोध है । पुलिस की बर्बरता ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन को एक नया प्रोत्साहन दिया । पूरे भारत में लोग बड़ी संख्या में CAA के खिलाफ अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं । यह क़ानून और इसके लागू होने का तरीका असंवैधानिक होने के साथ-साथ हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष परंपरा पर भी सवाल उठाता है । जामिया के छात्रों का विरोध – जो पुलिस हिंसा के वक़्त उनके पुस्तकालय में हुए नुक्सान के बाद शुरू हुए – असंख्यक रूप लेता है । इसमें शामिल हैं गीत और कविता, भाषण, कैंडल मार्च और रीड फॉर रेवोलुशन। रीड फॉर रेवोलुशन के तहत फुटपाथ पर पुस्तकालय के बाहर एक स्थान बनाया गया है जहां कुछ छात्र रोज़ इकट्ठा होते हैं, कुछ मैट और किताबें फैलाते हैं और राहगीरों को अपने साथ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । यहाँ पर विविध पुस्तकें मौजूद हैं – गांधी, नोम चोमस्की, टैगोर इत्यादी – और बच्चों की किताबें भी । जैसे विरोध प्रदर्शनों में तेजी आने लगी, गांधी राष्ट्रीय संग्रहालय ने छात्रों से संपर्क किया और उनके साथ “हिंद स्वराज” के दो अध्यायों को पढ़ा; इसकी वजह से वहां मौजूद समूहों के बीच कई दिलचस्प और रचनात्मक चर्चाएँ हुईं और हमारे लोकतंत्र की जड़ों के बारे में लोगों को ज़रूरी जानकारी मिली । हमने विरोध के एक आयोजक के साथ-साथ पाठकों से भी बात की।
यहाँ उनका कहना था: Sahil Ahmed, MA Student, Peace and Conflict Resolution
आप सभी को मालूम है कि दिसंबर की 15 तरीक को जामिया में क्या हादसा हुआ । तो हम लोगों ने सोचा की अहिंसा के विद्यार्थी होने के नाते हमें भी इस विरोध में कुछ योगदान करना चाहिए। इस तरह रीड फॉर रेवोलुशन का जनम हुआ। हमारी लाइब्रेरी के नष्ट होने के बाद हम एक नए तरीके का अहिंसक विरोध करना चाहते थे। इसकी शुरुआत 25 दिसंबर को हुई जब हमने बैठकर गाँधी और चोम्स्की की किताबें पढ़ीं। हमें साथ बैठ पढ़ता हुआ देख कर और लोग भी आने लगे। फिर Gandhi National Museum से एक कॉल आया मेरे पास और उन्होंने हमारे साथ हिन्द स्वराज के दो अध्याय पढ़ने का प्रस्ताव रखा। हमने फैसला किया कि २५ दिसंबर यानि क्रिसमस के दिन हम साथ में दो अध्याय पढ़ेंगे: एक हिन्दू-मुस्लिम एकता पर और एक सत्याग्रह पर। उसमें कुछ महत्वपूर्ण चीज़ें निकल के आई जैसे कोई काला क़ानून बनता है तो उसका विरोध कैसे किया जा सकता है। तो इसी तरह से हम विरोध भी कर रहे हैं और कुछ कंस्ट्रक्टिव काम भी कर रहे हैं । रोज़ाना 12 बजे हम अगर शुरू करते हैं, तो 12 से 2 बजे तक भीड़ कम रहती है। वहां ऐसे ही 5-7 पाठक रहते हैं लेकिन 2 के बाद जैसे ही साढ़े 5 तक हम पहुँचते हैं तो रोज़ाना 40 से 50 पाठक हो जाते हैं। लेकिन ठण्ड भी है और विंटर की छुट्टियां हैं। यूनिवर्सिटी के खुलने के बाद हम देखते हैं कि भीड़ किस तरीके की रहती है। हम लोग इस तरह का आंदोलन पूरे देश भर में भी चला सकते हैं; जैसे अलीगढ़ बंद है, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बंद है, वहां पर भी इसी तरह की एकजुटता के लिए विरोध किये जा सकते हैं। धारा 144 के अंतर्गत 4 लोग एक जगह इकट्ठे नहीं हो सकते पर किताब लेकर साथ बैठ कर पढ़ना एक अच्छा लूपहोल हो गया। आप ऐसा चौराहों पर, चौक पर कर सकते हैं। गाँधी लेके बैठ जाइए, संविधान लेके बैठ जाइए, प्रस्तावना लेके बैठ जाइए, आप ये काम कहीं पर भी बैठ के कर सकते हो। ये सरकार पढ़ने वालों से डरती है इसलिए हम लोगों से ये निवेदन भी कर रहे हैं की आप अपनी किताब लेके चौराहे पर बैठिये या collectorate office पर पढ़ने के लिए जाइये क्यूंकि ये पढ़ने वालों से घबराते हैं। तो ये एक जन विरोध बन सकता है पढ़ने वालों का। ये वक़्त भी है सामाजिक परिवर्तन का क्यूंकि जिस समुदाय, जिस धर्म से मैं ताल्लुक रखता हूँ वो आज भी 43% निरक्षर है। आज़ादी के बाद यह पहली बार हुआ हैं कि भारतीय मुस्लिम संविधान को बचाने के लिए निकले हैं। पहले वो निकलते थे ताज़िये निकलने के लिए या शब-ए-बारात के लिए तो ये जन संग्रहण का काम हम ये पढ़ने के माध्यम के द्वारा कर सकते हैं । ये सरकार पढ़ने वालों से डरती है क्यूंकि उनका मकसद है कि वो तर्कशून्यता को थोपना चाहते हैं। अगर वह विवेकशील होते तो वो मुस्लमान या कोई ऐसे समुदाय को कानून की मदद से समाज से बाहर नहीं करते। आप देखिये, उन्होंने tribal का ज़िक्र ही नहीं किया पूरे एक्ट में; tribal तो कोई धर्म ही नही है तोह वह लोग किस तरह से अपनी नागरिकता साबित करेंगे? जैसे denotified tribe है, उनको पहले अंग्रेज़ों ने अपराधी का करार दिया और फिर भारत की सरकार ने उनको denotify किया। वो बंजारा समुदाय है, अस्थिरवासी है, उनके पास कहाँ से कागज़ आएँगे? तो आप अगर तर्कहीनता थोपना चाहते हैं पूरे देश में तो इसका सवाल और विरोध सिर्फ शिक्षा से ही किया जा सकता है।
Reader, Anonymous
हम हमेशा जब भी किसी लेखक को देखते हैं तो कला हमेशा उसका एक हिस्सा है, और यह कला है जिससे आप क्रांति ला सकते हैं। भारत में भी आप देखते हैं कि जब आज़ादी का संघर्ष चल रहा था तब उर्दू कविता का पूरा भार उभर कर आया था। ये हमने विरोध के नारों में देखा है, शहीन बाघ की दीवारों पर देखा है, और तमिल नाडु के कोलम में भी।ये एक कहावत भी है कि हमारी कलम की स्याही किसी भी तलवार से ज़्यादा ताकतवर होती है।तो अगर ये सब हो रहा है, मुझे पता है कि ये तानाशाहों की वजह से हो रहा है, क्योंकि कभी हम नैतिक चीज़ों को समझ नही पाते।और कई सारे लोगों को ये भी नही पता कि सच में CAA है क्या पर फिर भी उसका सहयोग कर रहे हैं बिना जाने और कई सारे लोग विरोध कर रहे हैं बिना जाने, तो बेहतर है ना दोनो चीज़े करें, और फिर अपना एक नतीजा निकालें कि आखिर हम करना क्या चाहते हैं।
Reader: Shanawaz Anwar, Student, MTech (Computer Engineering)
मैं उस दिन लाइब्रेरी के बाहर था। मेरे बहुत सारे दोस्त थे जो लाइब्रेरी के अंदर थे। पुलिस हमला कर रहे थे, आँसू गैस के गोले दाग रहे थे तो हम लोग जब अंदर ताला तोड़ के चले गए तो बहुत सारे बच्चों को लगा कि क्यूंकि वह सिर्फ पढ़ रहे ते, पुलिस उन्हें कुछ नहीं करेगी। हम लोगों को फिर पता चला कि सारे विद्यार्थी खतरे में हैं; उनमे कई मेरे साथी थे और करीब 200 छात्राएं भी। इन छात्राओं को हमने मस्जिद के गेट से निकलवाने में मदद की। मेरे M Tech के सीनियर हैं, तो वो पढ़ रहे थे, बोल रहे थे “भाई मैं तो पढ़ रहा हूँ, आप CCTV देख लो, मैं कभी भी protest का हिस्सा नहीं था”। पर पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी और उनके सर पर डंडे बरसाए जिसे बचाने की कोशिश में उनके दोनों हाथ टूट गए । फुटपाथ पर पढ़ना हमारा विरोध इसलिए है क्यूंकि हमारी लाइब्रेरी में पढ़ते वक़्त ही पुलिस ने हमें बहुत क्रूरता के साथ मारा। बहुत सारे लोग हैं जो रिक्शा चलाते हैं बेचारे, दैनिक मज़दूरी का काम करते हैं, वो यहाँ पे आ नहीं सकते। हम लोग यहाँ से पढ़कर बहुत सारे विद्यार्थी जा कर जागरूकता कैंप चला सकते है। और उनको समझा सकते है कि क्या है ये CAA जो मोदी सर्कार लाई है, NRC क्या है, क्या होना चाहिए इस पे, क्यों लाया गया इत्यादी। जो भी संविधान को बदलने की बात आ रही है, तो जब आपके अंदर जानकारी नहीं होगी, तो किसी दूसरे को आप समझाते वक़्त गलत सूचना देंगे। इसलिए आप पहले अच्छे से पढ़ें उसको, समझें और फिर दूसरे के साथ बाटें। जैसे विरोध प्रदर्शन पिछले कुछ हफ्तों में भारत में बढ़े हैं, वैसे ही यह साफ़ हुआ है की इनमें किताबें और पढाई के लिए एक ख़ास जगह है। यह विश्वास एक पोस्टर के रूप में प्रकट होता है जिसपर लिखा है: भारत पढ़ेगा तोह भारत पढ़ेगा, भारत विरोध करेगा (India Reads, India Resists)
इसी विश्वास को दिल में रखकर शाहीन बाघ के प्रदर्शनकारियों ने एक बस अड्डे को फातिमा शेख- सावित्रीबाई फुले लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया है। पुस्तकालय संभावना की एक स्तिथि है और इसमें दमनकारी शासनों के खिलाफ प्रतिरोध की संभावना शामिल है। छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन में स्वयंसेवक, जो भारत के संविधान की रक्षा करना चाहते हैं, इसे पहचानते हैं और न केवल वयस्कों के लिए, बल्कि बच्चों के लिए ऐसी जगह बनाने की कोशिश कर रहे है जहाँ साथ पढ़ने और सोचने का मौका मिले। उन्हें आशा है की इन जगहों के द्वारा बच्चों और बुज़ुर्गों दोनों को ही स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का असली मतलब समझ आएगा। जैसे भारत भर के छात्र सत्ता की तानाशाही को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं, रीड फॉर रिवोल्यूशन जैसा आंदोलन हमें किताबों और लाइब्रेरी का महत्व याद दिलाता है, जो आजकल के बढ़ते अन्याय और असमानता का सामना करने के लिए और भी ज़रूरी हैं। टॉर्चलाइट का अगला मुद्दा इसे अधिक बारीकी से जांचने का वादा करता है। योगदान के लिए कृपया कॉल को देखें।
Hindi Translation by Neha Yadav
[…] In क्रांति के लिए किताबें (Reading for Revolution), Neha Gupta details the interviews of the students and readers who came together to make the makeshift ‘Read for Revolution’ protest library outside Jamia Millia Islamia University a reality – in the context of the current protests that have swept the political and social landscape against the highly discriminatory CAA (Citizenship Amendment Act), NRC (National Register of Citizens) and NPR (National Population Register). […]