स्कूल पुस्तकालय की चित्रों से सजी पुस्तकें बच्चों में पढ़ने की उत्सुकता जगाने में अहम भूमिका निभाती हैं | इन किताबों के चित्र पाठ्य को कल्पनात्मक विस्तार देते हैं, सौंदर्यबोध जगाते हैं और बच्चों के पढ़ने के शुरूआती दौर में अनुमान लगाकर पढ़ने में मदद भी करते हैं | स्कूल पुस्तकालय संचालित करने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है – बच्चों को उत्साही पाठक बनाना | पाठक बनने का मतलब है कि बच्चे पढ़ने का आनंद लें; उनमें चित्रों के प्रति सौंदर्यबोध विकसित हो | इसके लिए स्कूल के पुस्तकालय में एक शिक्षक या पुस्तकालय संचालक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है कि वह बच्चों के साथ किताबों का उपयोग करते हुए इन दोनों ही पहलुओं पर ध्यान रखें |
अकसर स्कूलों में देखने को मिलता है कि बच्चों को किताबें पढ़ने को दी जाती हैं लेकिन चित्रों को गौर से देखने और उन पर बातचीत पर बहुत ही कम ध्यान दिया जाता है | यह बात कई विद्यालयों में कला शिक्षण से भी जुड़ती है | स्कूलों में कला भी हाशिए का ही विषय है इस पर बहुत सोच – समझकर काम नहीं होता | यह केवल बच्चों से कुछ परंपरागत चित्र बनवाने तक ही सीमित रहता है | इस संदर्भ में यह लगता है कि बच्चों को चित्र बनाने व चित्रों को देखने में चित्रात्मक पुस्तकें विशिष्ट भूमिका अदा कर सकती हैं | इन किताबों के द्वारा बच्चों से चित्रों पर बात करते हुए चित्रों की बारीकियों में जा सकते हैं | इसके माध्यम से बच्चों को विभिन्न प्रकार के चित्रों को देखने का मौका भी मिलता है और फिर उसे उनके चित्रों में भी देखा जा सकता है |
कन्यिका किणी द्वारा चित्रित किताब क्यूँ क्यूँ लड़की एवं सुद्धसत्व बसु की किताब एक बजरबट्टू का गीत
आगे के इस आलेख में कुछ शासकीय प्राथमिक विद्यालयों में संचालित पुस्तकालय में शिक्षक और बच्चों के साथ काम कुछ ऐसे ही अनुभवों को साझा किया जा रहा है जहाँ बच्चों को किताबों को पढ़ने के साथ कला के अनुभव देने का प्रयास भी किया गया है |
बच्चों के भाषायी विकास को ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम शिक्षकों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हमने स्कूल में पुस्तकालय स्थापित करने और बच्चों को किताबें पढ़ने के अवसर देने की बात की | उनसे यह भी चर्चा की गई कि स्कूल में केवल किताबें आ जाने से हमारा उद्देश्य पूरा नहीं होगा | इसके लिए आवश्यक होगा कि हम बच्चों को नियमित रूप से किताबें पढ़ने के मौके दें और उनमें किताबों के प्रति रूचि बनाने के लिए उन्हें खुद भी किताबें पढ़कर सुनाएँ | किताबों व उनके चित्रों पर बातचीत करें, उन्हें अनुमान लगाने, स्वतंत्र रूप से चित्र बनाने और लिखने के भी मौके दें | इस प्रकार बच्चों के पढ़ने, लिखने, चित्र बनाने को साथ–साथ चलने वाली प्रक्रियाओं के रूप में देखें |
बच्चों से किताबों के चित्रों के प्रति रुझान बनाने के लिए ज़रूरी है कि बच्चों के साथ किताब पढ़ते हुए उनका ध्यान चित्रों की ओर भी दिलाया जाए जैसे- उन्हें चित्र कैसा लगा ? चित्र में क्या–क्या है ? यहाँ पर यह छोटा सा क्या दिखाई पड़ रहा है ? यह लड़की क्या सोच रही है ? यह लड़का पहले बड़ा खुश था अब कैसा दिख रहा है ? हाथी का पानी पीने के बाद कितना पेट फूल गया है ? यह चित्र में देखो | किताब के कौन से चित्र अच्छे लगे और क्यों ? आदि तरीके से बच्चों का चित्र की तरफ ध्यान आकर्षित किया जा सकता है | आगे चौथी–पांचवी कक्षाओं में हम एक चित्रकार की रचित विभिन्न किताबों के चित्र देख सकते हैं और उन पर बातचीत कर सकते हैं |
प्रोइती राय द्वारा चित्रित किताब इस्मत की ईद के कुछ पन्ने
चित्र पुस्तकों के माध्यम से बच्चों में कला के प्रति रूचि बढ़ती है और इन किताबों के चित्र बच्चों को उनकी स्मृतियों व कल्पनाओं में ले जाते हैं | छोटे बच्चों के साथ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब ‘रेलगाड़ी चले छुक–छुक’ पर बच्चों से जब बात की जाती है तो बच्चों की रेलगाड़ी से की गई यात्रा से जुड़ी यादें ताजा हो जाती हैं, इसमें चाहे गाँव का बच्चा हो या शहर का, चाहे मजदूर का बच्चा हो या किसी कर्मचारी का | चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किताब ‘अम्मा सबकी प्यारी अम्मा’ के चित्रों को देखकर बच्चों को अपने पशु–पक्षी पालने का अनुभव याद आ ही जाता है | इस किताब में उसके मुख्य पात्र रवि की अलग–अलग छवियां हैं | उसमें रवि के खुश होने, रवि के गुस्से में आने, रवि को गिलहरी को ध्यान से देखने व रात, दिन के समय के सुंदर फ्रेम हैं | इस पर बच्चों से बात होती है कि रवि अभी कैसा दिख रहा है ? अब यह क्या करेगा ? यह कौन सा समय है ? इन सब जगहों पर बच्चों का ध्यान दिलाना पड़ता है | इसी तरह छोटे बच्चों के लिए एकलव्य द्वारा प्रकाशित किताब ‘बिल्ली के बच्चे’ में भी बिल्ली के बच्चों की बहुत छवियां दिखाई पड़ती हैं और इसके माध्यम से बच्चों का ध्यान कहानी बढ़ाने में किया जाता है और बच्चे इससे जुड़ते भी हैं |
बच्चों को किताबों के चित्र दिखाने, उन पर बातचीत करने से कहीं उनमें यह समझ बन रही होती है ये चित्र किस तरह फोटो या विज्ञापन के चित्र से अलग है | इनमें कोई भाव भी हैं , चित्र कुछ कह रहा है ये बातें समझ में आती हैं और कहीं यह अपने आसपास की चीजों, पर्यावरण के प्रति अच्छे होने का एहसास भी दिलाती हैं, जैसे कि – ‘पहाड़ जिसे एक चिड़िया से प्यार हुआ’ किताब को पढ़ते हुए हम अपने आसपास के पक्षियों, पहाड़, परिवेश के प्रति संवेदनशीलता का भाव महसूस करते हैं | किताबों के चित्र बच्चों की स्मृतियों को भी जगाते हैं, वहीँ कल्पना को उड़ान देते हैं | बच्चों में जागरूकता व संवेदनशीलता का भाव भी जगाते हैं |
बच्चों से किताबों पर चर्चा के उपरांत हम उन्हें कहानी के आधार पर अपने मन से चित्र बनाने को कहते हैं | इसमें यह देखने को मिलता है कि बच्चे तरह-तरह के चित्र बनाते हैं और किताब से जुड़ा अपना अनुभव भी लिखते हैं | कुछ स्कूलों में जहाँ बच्चों का अभी किताबों से गहरा रिश्ता नहीं बना है, उनका अभी चित्र बनाने का अनुभव भी नहीं है तो वे कहते हैं कि हम चित्र नहीं बना पाएंगे तो बच्चों से बात करनी पड़ती है; तब वे भी कोशिश करते हैं | इसके अंतर्गत कुछ किताब से देखकर चित्र बनाने की कोशिश करते हैं, कुछ किताब से चित्र छापने की कोशिश भी करते हैं | इस प्रक्रिया में कभी कोई बच्चा कहेगा – चिड़िया नहीं बन रही , गाय का मुंह नहीं बन रहा |
स्कूल पुस्तकालय में काम करते हुए यह भी लगा कुछ अच्छे चित्रों से सजी किताबें बच्चों को चित्र बनाने की प्रेरणा भी देती हैं | एक स्कूल में बच्चों को तुलिका द्वारा प्रकाशित बढ़िया किताब ‘पहाड़ जिसे चिड़िया से प्यार हुआ’ बच्चों को पढ़कर सुनाई गई | इस किताब को सुनने–पढ़ने और इसके चित्रों को देखने में बच्चे बहुत रूचि लेते हैं, ऐसा अनुभव रहा है | यह किताब जिस तरह से आगे बढ़ती जाती है बच्चे इसके चित्रों को देखते हुए – वाओ, आहा आदि कहने लगते हैं | किताब पर बात करते हुए और इस किताब से प्रेरित होकर वे इस किताब के आधार पर चित्र बनाने की मांग करने लगे और बच्चों ने इस पर सहर्ष काम भी शुरू किया | कक्षा के चार–पांच बच्चे तो अपना मिड डे मील जल्दी से पूरा करके आ गए और एक चार्ट पर उन्होंने एक बढ़िया सी दृश्यावली के साथ चिड़िया का चित्र बनाया और दृश्यावली उस पर बड़े मनोयोग से रंग भी भरे | इस तरह से यह समझने को मिला कि कई किताबें बच्चों को चित्र बनाने की प्रेरणा खुद ही दे देती हैं |
पहले दो चित्रों में बच्चों ने पहाड़ जिसे चिड़िया से प्यार हुआ नामक किताब से प्रेरित होकर चित्र बनाये हैं; इन चित्रों में आप हरियाली, झरने, पहाड़, चिड़िया और सूरज को देख सकते हैं। तीसरा चित्र, जिसमे एक आदमी को नीले कुर्ते, पीली जैकेट और सफ़ेद टोपी में एक टोकरी के साथ देखा जा सकता है, इस्मत की ईद से प्रेरित है
बच्चों के चित्र बनाने पर शिक्षकों से बात करेंगे तो शिक्षक यह तो कहते हैं कि बच्चे चित्र बनाते हैं लेकिन उनका इस बात से जुड़ाव नहीं बन पाता चित्र बनाना बच्चों की अभिव्यक्ति से कैसे जुड़ा है ? बच्चों के चित्र बनाने से उनमें किन क्षमताओं का विकास हो रहा है ? यह आगे बच्चों के लेखन से कैसे जुड़ा है ? यह बच्चों के भाषा विकास और कला से कैसे जुड़ा हुआ है ? इनका आकलन कैसे किया जाए ? आदि |
बच्चों के बनाए चित्रों को जब हम देखते हैं तो यहाँ यह समझना होता कि एक बच्चे ने किस तरह अपने चित्र को पर्सीव किया है ? चित्र में कितना डीटेल है ? वह चित्र बनाने में कितना ध्यान लगाए हुए है ? यह सब बच्चों के चित्र बनाने की प्रक्रिया में देखा जा सकता है और इसको लेकर बच्चों से बातचीत की जा सकती है | अमूमन होता यह है कि बच्चों से चित्र तो बनवा लिए जाते हैं और उन्हें अच्छा कहकर रख दिया जाता है | उन्हें ध्यान से देखा नहीं जाता कि बच्चे और बेहतर कैसे बनाएं ? इस पर उनसे बात नहीं होती |
बाल पुस्तकों के चित्रों को देखते हुए बच्चे दूसरी संस्कृतियों से भी जुड़ते हैं | एकलव्य द्वारा प्रकाशित ‘गाँव का बच्चा’ किताब पढ़ते हुए बच्चे अफ्रीकी जन जीवन को करीब से देख पाते हैं | उनके पहनावे, रहन–सहन, गाँव– बाज़ार आदि से जुड़ते हैं | इस पर बच्चों से बात भी होती है | तुलिका द्वारा प्रकाशित ‘इस्मत की ईद’ नामक किताब के चित्रों को देखते बच्चे इस्लामिक संस्कृति से जुड़ते हैं और उनके पहनावे, खान–पान के प्रति संवेदनशील होते हैं | तुलिका द्वारा प्रकाशित ‘जू की कहानी’ की छवियां बच्चों को केरल के परिवेश से जोड़ती हैं और वहीँ तुलिका द्वारा ही प्रकाशित ‘क्यूं क्यूं लड़की’ के चित्रों को देखते हुए बच्चे झारखंड के जनजातीय क्षेत्र से जुड़ते हैं | इस प्रकार यह देखने में आता है इन किताबों के चित्र व कहानियां बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं | यह साहित्य और कला का उद्देश्य है |
यह भी देखने को मिलता है कि शुरुआत में बच्चे किताब से चित्र छापने की कोशिश भी करते हैं | इसके लिए वे किताब मांग लेते हैं | यहाँ शिक्षक द्वारा उन्हें मदद करने की जरुरत पड़ती है परंतु मौका देने से धीरे–धीरे वे चित्र बनाना सीख भी जाते हैं लेकिन यहाँ यह देखना होता है कि हम बच्चों के चित्रों को कैसे देखते हैं ? अगर बच्चों के चित्रों में हम बहुत स्पष्टता, सुडौलता देखेंगे तो बात नहीं बनेगी | यहाँ यह समझना होगा बच्चों ने चित्र को किस तरह पर्सीव किया है ? उसके चित्र में कल्पनाशीलता कहाँ दिखाई पड़ रही है ? इस साथ ही हमें बच्चों की उम्र के अनुसार उनके चित्रों के विकास को भी समझने की जरुरत पड़ेगी |
अंत में हमें लगता है कि बच्चों की चित्रों के प्रति कैसे उत्सुकता जगाई जाए ये हमें भी सीखना चाहिए | इसके लिए हमारा भी कला के प्रति रुझान होना चाहिए | किताबों को देखते हुए जहाँ बच्चे शुरुआत में यह सोचते हैं कि यह पात्र क्या सोच रहा है ? उसके हाव–भाव क्या बता रहे हैं ? ये शुरूआती दौर के अनुभव ही हमें आगे कला, फिल्मों की इमेज को देखने की समझ प्रदान कर सकते हैं | आगे जब हम किसी पेंटिंग को देखते हैं और यह सोचते हैं यह पेंटिंग क्या कह रही है ? यह हमसे कैसे जुड़ती है ? – इस प्रकार यह कहा जा सकता है शुरूआती दौर में चित्र पुस्तकों को देखने का मिला प्रशिक्षण आगे कला को समझने के प्रति रुझान बना सकता है |