किताबों का अंबार
(लेखक : यह सिर्फ़ एक लिखित दस्तावेज़ नहीं है बल्कि ये बतलाता है कि निम्नवर्गीये बसेरों में पढ़ने की जगहों का धीरे - धीरे करके लुप्त हो जाना कितने पाठकों को खो रहा है। हम ये तो मानकर चलते हैं कि हर इंसान एक पुस्तकालय की तरह होता है लेकिन इस पुस्तकालय से मिलने की जगह कहाँ है? ये दस्तावेज़ उस 'कहाँ' को देखने की चेष्ठा में अभी तक ख़त्म ही नहीं हुआ है...)
Photo credit: Lakhmi Kohli
ज़मीन पर एक बेहद जज्जर सी दरी बिछा दी गई। पूरी जगह अभी खाली है। दरी बिछा कर पार्क को साफ करने का काम किया जा रहा है। बड़ी सी झाड़ू को लिए एक शख्स ज़मीन की छाती को चीर रहा है। सूखे पत्ते उस झाड़ू की चुभन से दूर होकर यहाँ से वहाँ दौड़ लगा रहे हैं। कभी कोने में चले जाते हैं तो कभी बीच में आ जाते हैं। ज़मीन फिर भी साफ होती दिखाई दे रही है। झाड़ू लगाता हुआ शख्स दरी के ऊपर से भी उसी तरह से सफाई कर रहा है जैसे ज़मीन की कर रहा था। झ...